किसी गाँव में एक बूढ़ा ब्राहम्ण रहता था। वह साधू के भेस में बङा बङा बाल और दाढ़ी बढ़ाकर गाँव एवं शहर में घूमता रहता था। उसके पास सोने का यानि पच्चीस गिन्नी सिक्का था।
वह उसे अपने लम्बे बालों में छिपाकर रखता था। वह प्रतिदिन गंगा में स्नान करते समय केश से निकालकर अपने वस्त्र में छिपाकर रखता था और स्नान करने का बाद उसे यानि गिन्नी को अच्छी तरह गिनकर फिर से केश में छिपाकर रख लेता था।
एक दिन की बात है जब ब्राहम्न गंगा में स्नान कर रहा था तो उसे एक बनियाँ ने देख लिया। और उसि दिन से बनिया धनिकमल सोचने लगा कि उस ब्राह्मन के पच्चीस सोने के सिक्के कैसे ले लिया जाए। इसके लिए उसने योजना बनाना शुरू कर दिया। और अंत में धनिकमल बनिया ने योजना बना ही लिया।
एक दिन बनिया धनिकमल ने अपनी पत्नी, बेटी एवं बेटा से कहा कि एक साधू ब्राह्मन के पास पच्चीस सोने का सिक्के हैं जिसे वो अपने केश में छिपाकर रखता है। उसे किसी प्रकार मुझे लेना है। मैं एक योजना बनाया है कि घर में उसे निमंत्रन देकर सम्मान के साथ बुलाकर लाता हूँ। उनसे कहूँगा कि कृपया मेरे यहाँ पधारकर मेरा उपकार किजिए।
धनिकमल ने उस ब्राहमण को निमंत्रण देकर अपने घर बुलाया और बहुत सम्मान एवं प्रतिष्ठा के साथ उन्हें एक सुन्दर बिछावन पर बिठाया। खाने की सामग्री टेबल पर रखने लगा। दो किलो दुध, दो दर्जन केले, काजू , बादाम, एवं मिष्ठान था। बहुत प्यार एवं सम्मान के साथ उन्हें खाने के लिए विनती करने लगा। साधू ने विनती स्वीकर करके भोजन किया और एक लंबी सांस ली तथा उनके घर में गंगा जल छिङक कर शुद्ध किया। यह देखने के लिए पास के पङोसी भी उपस्तिथ थे। कुछ पल बीता भी नहीं था कि घनिकमल की पत्नि, बच्चे एवं स्वयं जोर जोर से चिल्लाकर रोने लगा कि मैंने जीवन भर कमाकर सोने की पच्चीस गिन्नी रख था, जो साधू बाबा ब्राह्मन ने ले लिया। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उसने अपने केश में छिपाकर रखा है। लोगों को लगा कि बात सही लगता है। उनलोगों ने साधू की तालाशी ली तो सही प्रतीत हुआ यानि साधु के केश से मात्र पच्चीस गिन्नी ही निकला। पङोसीगण एवं लोगों ने साधू की कफी बेज्जती कर भगा दिया और सोने की पच्चीस गिन्नी धनिकमल की पत्नी को सम्मान के साथ वापस कर दिया।
शिक्षा – किसी को भी अनजान व्यक्ति पर निष्ठापूर्ण विश्वास नहीं करना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें