एक बार स्वर्ग लोक में सभा हो रही थी। जिसमें सभी देवतागण उपस्थित थे। उसी समय सभा के बीच में ब्रह्मा जी की पुत्री ब्रम्हा जी से कुछ कहने आये थे। उनकी पुत्री का संजोग से हवा की झोंक के कारण दुप्पटा निचे गिर गया। सभी देवताओं का सिर निचे झुक गया। परन्तु एक देवता का सिर नहीं झुका। बल्कि वह उनकी पुत्री को देखते ही रह गए। तब इसपर ब्रम्हा जी क्रोधित होकर अपनी पुत्री और उस देवता को श्राप दिया कि पृथ्वी लोक पर जन्म लेकर कस्ट भोगना पड़ेगा। उनकी पुत्री की गंगा बनकर आयी और वह देवता राजा शान्तनु बना। राजा शान्तनु गंगा से शादी करना चाहता था, परंतु गंगा ने शर्त रख दी मैं आपके यहाँ तब तक रहूंगी जब तक मेरे ऊपर अंकुश नहीं डालोगे। जिसदिन मेरी इच्छा के अनुसार मुझे काम नहीं करने दोगे उसी वक्त मैं तुम्हें छोड़कर चली जाउँगी। राजा शान्तनु ने शर्त मंजूर कर लिया।
महाभारत की पूरी कहानी - शूरुआत - भाग 1
राजा शान्तनु से गंगा को एक पुत्र प्राप्त हुआ। गंगा ने उसे गंगा नदी में डाल आयी। राजा इसपर कुछ नहीं बोला। पुनः दूसरा, तीसरा, चौथा, पांचवें, छठे, सातवें पुत्र को गंगा नदी में डाल आयी। परन्तु जब आठवें पुत्र को भी गंगा जब नदी में बहाने जा रही थी तो राजा शान्तनु ने इस बार रोक लिया। इसपर गंगा बोली कि शर्त के अनुसार मैं आपको छोड़कर जा रही हूँ, जहाँ तक इस बालक की बात है तो मैं इसे पाल पोसकर एवं सभी विद्या से निपुण करके आपके पास छोड़ जाउँगी।गंगा ने ऐसा ही किया। एक दिन गंगा तट पर जब राजा शान्तनु टहल रहे थे, उसी समय गंगा अपने पुत्र देवव्रत को लेकर राजा शान्तनु के पास छोड़कर स्वयं लुप्त हो गयी।
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महाभारत की पूरी कहानी - शूरुआत - भाग 1
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