सोमवार, 5 दिसंबर 2016

हिंदी कहानी - सोच की भिन्नता - Difference in Thinking

किसी गाँव में चिंता नाम की एक युवती रहती थी। वह अपने माता पिता के घर ही रहती थी। वह हमेशा कुछ न कुछ सोचती रहती थी।

एक दिन की बात है, वह बैठे - बैठे गंभीर चिंतन में मग्न थी। वह सोच रही थी कि मेरा विवाह होगा, फिर मेरे बच्चे होंगे। वह यहाँ गेंद से खेलेंगे और गेंद अचानक कुँए में चला जाएगा। मेरे बच्चे भी उसे पकङने के उद्देश्य से दौङते हुए कुँए में गिर जाएगा। यह सोचकर वह फूट-फूट कर रोने लगी। लोग सब वहाँ पहुँच गए और रोने का कारण पूछने लगे। बहुत पूछने पर उसने रोने का कारण नहीं बताया। तब उस गाँव के मुखिया ने पीठ थपथपाते हुए प्यार से पूछा तुम रो क्यों रही हो, आखिर रोने का कारण क्या है। मैं तुम्हारा सबकुछ पूरा करने का वादा करता हूँ। तब वह युवती ने कहा कि मेरा विवाह होगा, और मेरा बच्चा यहाँ खेलने के क्रम में इस कुँए में गिर जाएगा। इसलिए मैं रो रही हूँ। तब मुखिया साहब ने उसे धैर्य दिलाया कि तुम्हारा विवाह दूसरे गाँव में करउँगा। तुम्हारे बच्च यहाँ खेलेंगे ही नहीं फिर इस कुँए में गिरने का सवाल ही नहीं उठता है। इसलिए तुम मत रोओ एेसा होगा ही नहीं। फिर चिंता ने रोना बंद किया।

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