एक दिन की बात है, माँ पार्वती स्नान कर रही थी। आगे दरवाजे पर कार्तिक जी को बिठाकर निर्देश दिया गया था की जब तक मैं स्नान करके बहार नहीं आती हूँ तब तक के लिए बिच में कोई भी अन्दर न आने पाए। इतना आदेश करने पर भी भगवान शंकर को कार्तिक जी अन्दर आने पर मना नहीं कर पाए। शंकर भगवान कार्तिक जी को बार बार चकमा देकर प्रवेश कर जाते हैं। माँ पार्वती बोली स्वामी आप अन्दर कैसे प्रवेश कर पाए, जब की मेरा पुत्र दरवाजे पर तैनात था।
ठीक उसी दिन माँ पार्वती ने संकल्प लिया की एक तेजस्वी पुत्र को जन्म देना है और अपने शरीर के उपरी मल से श्री गणेश जी को जन्म देती हैं। वह वुद्दिमान और तेजस्वी बालक था। पुनः एक दिन माँ पार्वती स्नान कर रही थी और श्री गणेश जी को दरवाजे पर देखभाल और कोई अन्दर न आने पाए, ऐसा आदेश दे दिया। गणेश जी दरवाजे पर पहरा दे रहे थे की ठीक उसी समय भगवान शंकर आये और अन्दर प्रवेश करना चाहा, परन्तु गणेश भगवान ने उन्हें रोक दिया। लेकिन शंकर भगवान ने फिर से प्रवेश करने की कोशिश की और फिर गणेश जी ने रोकना चाहा, परन्तु इस बार दोनो में लड़ाई छीर गयी। ब्रम्हा जी समझाने आये तो गणेश जी ने उन्हें भी खदेङ दिया। देवलोक में हाहाकार मच गया। शंकर भगवान तांडव नृत्य करने लग गये और अंत में गणेश जी का सर धर से अलग कर दिया। जब माता पार्वती निकली तो कहा भगवन आपने ये क्या कर दिया। गणेश जी को जल्दी प्राण दीजये अन्यथा मैं भी मर जाउंगी । अंत में शंकर भगवान ने अपने दूतों को भेजकर कहा जाओ देखो इस महाकाल रात्रि में जो मानव या पशु में जिसकी माँ अपने बच्चे से अलग हटकर और पलटकर सो रही हो, उसी के गर्दन काटकर ले आओ, तभी गणेश जी का प्राण लौटाया जा सकता है। उनके सभी दूंतों ने पृथ्वी को छान डाला कहीं ऐसा दृश्य नहीं मिला। बहुत दूंधने पर एक हथनी अपने बच्चे से पलटकर सो रही थी। दूत ने बिना विलम्ब किए गर्दन काटकर ले आया। तब शंकर भगवान ने हथनी के बच्चे का सर जोरकर गणेश जी को प्राण दिया और वो जिन्दा हुए। और अंत में फिर सभी देवतागण गणेश जी को आशीर्वाद देकर प्रस्थान किए।
समाप्त - गणेश जी की कथा
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