एक बार हनुमान जी पुष्प वाटिका की रक्षा कर रहे थे। उसी वाटिका आर्गुन पांचाली के लिए पुष्प लेने के लिए प्रवेश करना चाहते हैं।
आर्गुन पहले हनुमान जी से काफी विनती करते हैं, परन्तु हनुमान जी कहते हैं कि मैं अपने स्वामी के आदेश के बिना एक भी पुष्प नहीं दे सकता। उनका कहना है कि पुष्प लेने वाला जब तक अपना प्रक्रम नहीं दिखता तब तक वह पुष्प लेने का अधिकारी नहीं है। इसलिए आप भी अपना कुछ प्रक्रम दिखाओ तभी आपको पुष्प मिल सकता है। आर्गुन ने कहा कि बस इतना ही, इसपर आर्गुन ने बगल में समुद्र पर वानो से पुल बना दिया और कहा कि अब आप इसको तोरकर दिखाओ तो मैं हार मान जाऊंगा। हनुमान जी ने इधर उधर देख लिया और कहा की ठीक है मैं इसपर चढ़कर देखता हूँ। जैसे ही हनुमान जी मने पुल पर अपना एक पैर रखा कि पुल चरमराने लगा। अपने भक्त की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण ने कश्यप रूप धारण कर अपना पीठ लगा दिया, जिससे कि पुल टूटे नहीं। हनुमान जी जैसे ही अपना दूसरा पैर रखना चाहा की उन्होंने बहते हुए रक्त को देखा, वो चोंक गये और पलटकर देखने लगे तो देखते हैं की भगवन कृष्ण कश्यप रूप में अपना पीठ लगाये हुए थे। वो तुरंत गिरकर भगवान कृष्ण से छमा याचना करने लगे। तो एक तरफ से भगवान राम भी आते हुए कहा के हमे अपने भक्त कि रक्षण करना परम क्रतव्य है।
समाप्त - हनुमान जी और अर्जुन के बीच स्पर्धा
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