मंगलवार, 1 अगस्त 2017

माहात्मा जी का तोता - हिंदी कहानी

प्राचीन काल मे किसी महात्मा ने एक तोता को पिंजरे में पलता था। वह तोता महात्मा जी से काफी गुण की बात सीख चुका था। महात्मा जी उसे काफी श्रद्धा से पालते थे और काफी गुणवान बना चुके थे।
परंतु एक दिन महात्मा जी ने सोचा कि मैंने जो पाठ पढ़ाया है उसे तोता सही में स्मरण किआ है या नही। या ओर यूं ही रट लिए हैं। एक न इसकी परीक्ष ली जाय। उसने एक शिकारी को बुलाकर कहा कि मैंने एक पाला है। जिसे गुणवान बनाकर जंगल मे छोड़ दिया है। जिसके कारण जंगल के अन्य तोते पर इसका प्रभाव परे।
------------------------------------

महात्मा जी का तोता

------------------------------------
शिकारी जब जंगल जाकर देखा तो सभी तोता एक ही रट लगा रहे थे, शिकारी आयेगा, जाल बिछाएगा, लोभ में फसाना नहीं। यह सुनकर शिकारी जंगल से लौट आता है और महात्मा जी से कहता है कि तोता तो पहले से ही रट लगा रहे हैं कि तोता आयेगा, जाल बिछएगा, लोभ में फसना नहीं। भला वो सब तोता जाल में कैसे फास सकते हैं।
इस बात पर महात्मा जी ने कहा कि क्या तुमने सचमुच जाल बिछाकर देखा था।? तो शिकारी ने कहा कि नहीं। इसपर महात्मा ने कहा कि ऐसा करके तो देखो। फिर शिकारी पुनः जंगल गया और जाल बिछाकर दाना डालकर देखा। तो धीरे धीरे बहुत से तोता यह बात रट भी रहा था और जाल के अन्दर आकर दाना चुग भी रहा था। इस तरह बहुत से तोता जाल में फास गये, जिसमें महात्मा जी का भी तोता था। जब शिकारी जाल लेकर महात्मा के पास आया तो तोता घबरा गया और सरमाया हुआ सा बैठ गया। इसपर महात्मा ने कहा, तोता रटने से कोई लाभ नहीं, जब तक कि उसे आत्मसात नहीं कर लेते।

----------------------------------------------------------
समाप्त - महात्मा जी का तोता - हिंदी कहानी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें