एक मोहन नाम का गरीब लङका था। वह प्रतिदिन खेत से घास काटकर बाजार में बेचने जाता था।
एक रमेश नाम का अादमी शहर में गाय पालता था। वह प्रतिदिन मोहन से घास खरीदता था। एक दिन मोहन को खेत में घास कम मिला, उसे काटकर वह प्रतिदिन की भाँति बाजार में बेचने चला जाता है। उस दिन भी रमेश ही घास खरीदता है और प्रतिदिन की भाँति घास का पूरा कीमत देता है। मोहन ने कहा कि बाबूजी आज घास कम मिलने के कारण कम ही काटकर लाया हूँ। इसलिए आज मुझे पैसे कम दीजिए। रमेश ने मोहन की इमानदारी देखकर बोला, बेटा कोई बात नहीं रख लो। मोहन उसे पैसे लौटाने लगा। रमेश ने कहा, बेटा तुम कहाँ रहते हो? तुम एेसा करो कि मेरे घर गाय को खाना खिलाने के लिए नौकरी कर लो। मोहन गाय को प्रतिदिन नहलाने लगा और अच्छी तरह से देखभाल करने लगा। गाय भी पहले की अपेक्षा दूगना दूध देने लगी। मोहन की ईमानदारी देखकर रमेश बाबू प्रसन्न होकर अपने बेटे के समान व्यवहार करने लगा। मोहन भी बहुत खुश रहता था। अंत में रमेश बाबू अपना संतान समझकर, अपनी सारी सम्पत्ति उसके नाम कर दिया।
End of Hindi Story - ईमानदारी का फल
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