शेर कई दिनों से भूखा था। भूख के कारन उसकी जान निकल रही थी। वह अपनी भूख मिटने के लिए नदी के किनारे बैठकर किसी न किसी जानवर का इंतज़ार कर रहा था। उसने सोचा की कोई न कोई जानवर अपनी प्यास मिटाने के लिए नदी के किनारे जरूर आयेगा और तब मैं उसे झपटकर उसे अपना भोजन बना लूँगा। इस तरह मैं अपनी भूख मिटा सकता हूँ।
ऐसा सोचकर शेर नदी के किनारे बैठ गया। तभी थोरी देर में सियार का जोड़ा नदी किनारे पानी पिने आया, परन्तु शेर को वहां बैठा देख दोनों सियार डर गये। दोनों ने सोचा की यदि भागना चाहंगे तो मारे जायंगे, क्यों न बुद्धि से काम लिया जाये। मादा सियार ने आपस में बातचीत कर शेर के सामने जाकर बोली - हे स्वामी, हम दोनों कहीं से भोजन कर आये हैं। जूठा मुह सोचा था की प्यास बुझाकर तब आपसे बात करते। तो इसपर शेर ने कहा जल्दी प्यास बुझाकर आओ। दोनों ने संतुस्तिपूर्ण प्यास बुझा लिए। दोनों शेर के पास जाकर कहने लगे, हे स्वामी हमारे आठ बच्चे हैं, जिसमे से मेरा पति छह बच्चो को लेकर सिर्फ २ बच्चे मुझे देने को तैयार हैं। अब आप ही सही फैसला कर दे। तो इसपर शेर ने कहा बच्चे कहाँ हैं? शेर ने सोचा की भूख पूर्ण रूप से मिट जायगी, संख्या बढ़ रही है। सियार के जोरे ने शेर से कहा की बच्चे घर पर हैं। शेर ने कहा, चलो मैं तुरंत फैसला कर दूंगा। आगे आगे सियार का जोड़ा चला, और पीछे पीछे शेर। अंततः सियार अपने गुफा में प्रवेश कर गया और अंदर में ही चिल्लाने लगे। शेर ने कहा की बच्चे को लेकर बहार आओ, मैं अभी फैसला कर दूंगा।
अंत में सियार के जोड़े ने गुफा के अंदर से ही हाथ जोडकर कहा की हमने आपस में ही समझोता कर लिया, अब हम दोनों नहीं लड़ेंगे, और ये कहकर अपनी गुफा का दरवाजा पत्थर से बंद कर लिया।शेर को हाथ मलते मलते वापस लौटना पड़ा।
समाप्त - शेर और सियार की कहानी
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