एक बार की बात है भगवान कृष्ण के परम मित्र उद्धव जी थे। उद्धव जी को अपने ज्ञान पर पूरा भरोसा था की प्रेम के गहरे प्रभाव को भी अपने ज्ञान रूपी अस्त्र से छिन्न बिन्न कर वास्तविक प्रेम को समव्प्त कर सकता हूँ।
उद्धव गोपी संवाद |
श्री कृष्ण जी के ज्ञान रूपी प्रकाश को धूमिल करने यानि प्रेम के प्रभाव को दवाना कितना कठिन है इसे साबित करने हेतु उद्धव जी को वृज्वासी प्रेम में पागल प्रेमिका राधा को समझाने हेतु वृजपुर भेजते हैं।
जब उद्धव जी ज्ञान की गठरी बांधे व्रिज्वासी प्रेमिका राधा एवम उनकी सहेलियाँ को समझाने हेतु वृजपुर यानि गोकुल पहुँचते हैं तो वहां का वातावरण प्रक्रति एवम् निवासिओं को देखकर दंग या भोचक्का सा रह जाते हैं। श्री कृष्ण के वियोग में सभी पर सन्नाटे छाए हुए हैं। यहाँ तक कि वहां के निवासी या मात्र प्रेमिका राधा ही नहीं उदास थे बल्कि प्रकृति को यानि पेड़, पौधे, गाय, यमुना तथा वातावरण सबके सब मुर्झ्ये हुए थे।
जब उद्धव अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से वृज्वासी प्रेमिका राधा एवम् उनकी सहेली को समझाने बैठे तो वहां ऐसा अनुभव किआ की अपने ज्ञान का प्रकाश लाख समझाने पर भी की कृष्ण कुछ नहीं है, वह मेरा मित्र एक साधारण व्यक्ति है। उसके पीछे तुम सब इतना पागल क्यों हो रहे हो। इस पर कृष्ण के वियोग में घुट घुट कर जीने वाली प्रेमिका सब बोली अरे उधो मन नहीं दस बीस मन यानि ह्रदय जो एक होता है, हम सब कृष्ण को समर्पित हो चुकी हैं। उनके बिना एक पल भी जीना हम सब के लिए मुमकिन नहीं हैं। हमें तो वृज के हर वस्तु उनकी अनुपस्त्थी में ऐसा लगता है की काट कहा रहा है। हम सब का जीना दुर्लभ है। हमें यहाँ की कोई भी वस्तु यहाँ तक की प्रकर्ति यानि के फल, फूल, गाय, बैल, यमुना कुछ भी नहीं भाता है। हम सब तो उनके बिना पागल की भांति यमुना के किनारे भूखे प्यासे लोट पोट कर इतना दुखी हैं की आँका नहीं जा सकता। हम सब तो अपना सुध बुध खो चुकी हूँ की मैं कहाँ की हूँ क्या करती हूँ और क्या करना चाहिए। बस श्री कृष्ण का ही चेहरा और उसके साथ की गयी रास लीला मस्तिस्क में घूमता रहता है।
इस प्रकार उद्धव जी को अपनी ज्ञान की गठरी समेटकर वापस आना पड़ा। उन गोपिकाओं पर उनके ज्ञान का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। लाख ज्ञान की बात समझाने पर भी उन गोपिकाओं के बहते हुए आंशु को नहीं रोक पाए।
अंत में जब उद्धव लौट रहे थे तो नन्द बाबा श्री कृष्ण के लिए पिला वस्त्र, माँ यशोदा माखन मिश्री, प्रेमिका राधा हरे रंग की मीठी तान वाली बांसुरी, तथा गोपियाँ मयूर के पंख भेट में दिया। उद्धव के लौटते समय सभी के आँखों से आंसू के धरा बह रही थी। उद्धव जी के ज्ञान पर प्रेम का प्रकाश रूपी बदल छा गया। यानि ज्ञान पर प्रेम का आचादित होना संभव हो गया। ज्ञान का बस प्रेम के उपर नहीं चल पाया। ज्ञान नदी बन गयी तो प्रेम सागर बन गया। उद्धव का ज्ञान प्रेम के सामने छोटा पर गया।
जब उद्धव श्री कृष्ण के पास पहुचे तो वहां का दृश्य उनको समझाने में सक्षम नहीं हो पाए। उद्धव जी ने कहा की मैं उन सबके सामने हतोत्साहित हो गया और हार कर वापस लौट आया।
कहानी समाप्त
- भगवान कृष्ण और उद्धव की कहानी
- उद्धव और गोपियाँ की कहानी
- उद्धव कृष्ण संवाद
- उद्धव कौन थे
- उद्धव गोपी संवाद
JAY SHREE KRISHNA
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