चुरावत जी राजपुताना यानि राजस्थान राजघरानो के सुपुत्र थे। वह करकड़े जवान, आयु बीस वर्ष, रंग गोरे चित्ते, काफी साहसी, मुखमंडल पर हमेशा अजीब की खास लालिमा, देखने में लम्बे चोरे छाती, वादन फुर्तीला राजा के सम्पूर्ण गुणों से गुनी थे।
अभी अभी चुरावत जी, हरारानी के साथ हाथ पीला कर राजगृह में आये ही थे, पैर की लालिमा फीका भी नहीं पड़ा था। हाडा रानी के पायल की नुपुर और चूड़ी की खनक राजमहल के एक कोने में झंकार किआ था। दो दिलों का पवित्र मिलन अभी ठीक से हो भी नहीं पाया था की दुसरे राज्य मेवार के राजा ने इनके राज्य पर आक्रमण की विगुल फूक दी। राज्य में ढोल नगाड़े बाजे गाजे जमकर बजने लगे। युद्ध की काफी तैयारिया हो चुकी थी। सेना सज धज कर दुल्हन की भांति जंग के लिए आगे बढ़ने वाली थी। मात्र सेनापति को राजा के आज्ञा का इंतज़ार था। राजा चुरावत जी दुविधा में पर गये थे। वो कई बार अपने कमरे में प्रवेश करते और फिर बहर आ जाते जंग की तयारी करते। राजा चुरावत जी को बार बार रानी का प्रेम खीचकर वापस कमरे में ले जाता, परन्तु इस बार उनकी पत्नी ने कड़ा जवाब दिया की मैं हर हालत में राज्य को बचाते हुए आप के संग विराजमान रहूंगी।
इतना भरोसा प्राप्त कर राजा अपने रथ पर सवार होकर युद्ध के लिए चले गये। राजा ने अपने सेना एवं सेनापति को आगे बढ़ने का आदेश दिया। अब सभी सेना मतवाले हाथी की तरह विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से आगे बढ़ने लगे।
तभी राजा चुरावत जी ने अपने अपने राजदूत तो अपने पत्नी हाडा रानी से कुछ निशानी के तौर पर कुछ मांगकर लाने को कहा। राजदूत ने हाडा रानी के पास जाकर राजा द्वारा कहे सन्देश को कहा। हारा रानी के यह सन्देश सुनकर आव देखा न ताव और स्वयं अपने सर के केश कश्कर पकड़ी और दाहिने हाथ में नंगी तलवार लेकर सर को धर से अलग कर दिया और राजदूत से कहा ले जा यह विशेष निशानी मुंडमाल राजा को दे देना और कहना की यह मुंड की माला पहनकर अवस्य ही विजय प्राप्त करेंगे। राजदूत ने मुंडमाला को लेकर रनछेत्र में राजा चुरावत जी को अर्पित किया। राजा इस मुंडमाल को देखकर दंग रह गये और फिर वो काफी क्रोधित हो गये और फिर इस मुंडमाल को पहनकर ऐसा युद्ध किआ की पूरे रनभूमि में हाहाकार मच गया। इस प्रकार राजा मेवार पर अपना अधिपत्य जमाकर अपना धवज राजमहल की चोटी पर फहरा दिया।
और अंततः राजा चुरावत जी ने मेवार पर विजय प्राप्त किया।
इस कहानी में मुंड की माला भेट में देने के कारन इस कहानी का शीर्षक मुंडमाल पड़ा। इस कहानी में नारी की तेजस्वता, सहस, एवं वीरांगना का चित्रण हुआ है।
वर्तनी, व्याकरण संबंधी गलतियाँ बहुत हैं।
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