एक बार की बात है की सभी अन्न मिलकर सभा का आयोजन किया। यह सभा देवताओं के राजा इंद्र की अद्यक्ष्यता में संपन्न होने वाली थी। यानि यह सभा इंद्र भगवान के इन्द्रलोक अर्थात इन्द्रशन में होने की बात थी। जिसकी व्यवस्था ब्रम्हा जी के उच्च स्थर पर किया था। सभा का समय संध्या छह बजे निश्चित किया गया था।
अन्न का राजा (अन्न का महत्व)
सभा के निश्चित समय पर सभी अन्न महाराज (जैसे गेहू, मटर, जों, धान, मटर आदि) पहुच गये। परन्तु चना महाराज समय पर नहीं पहुच पाए थे। सभा की कार्यवाही आरम्भ ही होने वाली थी, परन्तु चना महाराज के उपस्थित हुए बिना सभा आरम्भ होने में विलम्ब हो रही थी। इसपर धान महाराज ने कहा की किसी के विलंभ होने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए। सभा तो ठीक समय पर ही प्रारंभ होने चाहिए। इसपर सभी अन्न महाराज ने अपना अपना समर्थन दिया। तब व्यब्स्थापक महोदय ब्रम्हा जी ने सभा की कार्यवाही अद्यक्ष भगवान इंद्र की अद्याक्ष्यता में शुरु करवाई। अन्तोगत्वा इसी वीच चना महाराज हिलते डुलते पहुच गये। सभा में सम्मलित होने का आदेश सभा के अद्यक्ष इंद्र भगवान ने तो दी परन्तु उन्हें दंड का भागी बनना पड़ा। भगवन इंद्र ने चना महाराज को नाक पकड़ कर इस प्रकार खीचा की गिरते पड़ते उनकी नाक टेडी हो गयी, इस पर सभी अन्न पूरे ठहाके के साथ हंसा। परन्तु सभा में सभी अन्न को काम बंटा गया तो सबने अधिक काम करने से मना कर दिया। परन्तु चना महाराज को जितना भी काम दिया गया था उन्होंने कभी भी अस्वीकार नहीं किया। अंत में ब्रम्हा जी व्यवस्थापक महोदय ने सभा के बीच परिणाम घोषित किया कि अननो में चना महोदय से ज्यदा काम करने की छमता किसी और में नहीं है। अर्थात आज से अन्नों के राजा चना महाराज होंगे। चना महाराज हाथ जोडकर स्वीकार किया।
इस प्रकार सभा समाप्ति की घोषणा अद्यक्ष महोदय इंद्र भगवान किया। सभी अन्न महाराज अपने अपने घर को प्रस्थान किये।
समाप्त - अन्न का राजा (अन्न का महत्व)
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