एक दिन एक साधू गंगा स्नान
कर रहा था। उसने देखा कि एक बिच्छु जल धारा में बहता जा रहा था । उसने साधू को
उसपर दया आ गई और बिच्छु को जल धारा से निकाल कर बाहर कर दिया। जब की बिच्छु ने
साधू को डंक मार दिया था। बिच्छु पुनः जल धारा में उब डुब करने लगा।साधू ने फिर
बिच्छु को डंक मारने पर भी निकाल दिया ।
इस तरह कई वार बिच्छु डंक मारते गए फिर भी
साधू उसे बाहर निकालता ही रहा। यह देख कर एक सज्जन वयक्ति ने साधू से कहा, साधू
महराज बिच्छु बारबार आप को डंक मारता रहा आप उऩहें क्यों बाहर निकालते रहे। साधू
ने जवाब दिया कि जब बिच्छु अपना स्वभाव नहीं
बदल सकता है तो मैं विवेकशील प्राणी अपना स्वभाव क्यों बदलूं । मेरा काम
है परोपकार करना। मैं तो वही काम करतारहा
हूँ।
(समाप्त)
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