रविवार, 11 जून 2017

पंच परमेश्वर कहानी की समीक्षा और सारांश - मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद द्वारा रचित


प्रस्तुत कहानी पंच परमेश्वर, मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद द्वारा रचित है जिसका हम सिर्फ सारांश और समीक्षा ही पढेंगे। 

एक ही गाँव के दो व्यक्ति अलगू चौधरी और जुम्मन सेख की है। दोनों में से एक हिन्दू धर्म के और दूसरा मुस्लिम धर्म के हैं। फिर भी दोनों के बीच काफी गहरी मित्रता है जो की वन्सजो से चली आ रही थी। जुम्मन सेख की एक खाला (मासी) जो दूर के रिश्तेदार में था, परन्तु उस बुढ़िया का कोई और नहीं था। बुढ़िया के पास काफी जमीन जायदाद था। उस गाँव के जाने माने एवं प्रथिठित और सम्मानित व्यक्तियौ में बोल वाला था। 
जुम्मन के परिवार एवं स्वयं खाला के विशेष खातिर सम्मान और इज्ज़त प्रतिष्ठा का काफी ख्याल रखते थे। जुम्मन अपनी खाला से कह सुनकर कुछ दिनों के बाद जमीं के रजिस्ट्री अपने नाम करवा लिया।
रजिस्ट्री के कुछ दिनों के बाद बुढ़िया की खातिर एवं सम्मान में कमी होने लगी। एक दिन ऐसा भी देखने को आया की अब बुढ़िया को खाने और पहनने के भी लाले पर गये। और सब ताने देने लग गये की बुढ़िया अमृत पीकर आई हैं न जाने कब मरेगी, पूरे जायदाद खारक ही मरेगी। प्रत्दिन इस तरह के घटनाओं के बाद अब बुढिया ने जुम्मन सेख से पंचायत बैठाने की बात कहि।  जुम्मन सेख ने कही के मैं ये थोरे ही जानता था की तुम अमर बनकर रहेगी। जा जिस किसी को तुम्हें पंच में बुलाना हो या फैसला करना हो सोख से बुला ला और न्याय करवा ले। जुम्मन सेख यह जानता था की मेरे विरोध में गाँव का कोई भी पंच फैसला नहीं करेंगे।
अंत में एक दिन की संध्या में पंच बैठाने हेतु बुढिया जर्जर हालत में भी पूरे गाँव में घर घर में जाकर अपनी विपदा सरे लोगों से कह दी। परन्तु सब बहाने बनाकर उस बुढिया की मदद करने से इंकार कर दिया। आखिरि दम लगाकर यानि जान हथेली पर रखकर उसके दोस्त अलगू चौधरी के पास पहुचकर हाँफते हुए बुढ़िया सांस लेकर बोली बेटा तुम ही मेरा पंच बनकर न्याय कर मुझे उद्धार कर दो। तब इसपर अलगू चौधरी ने कहा की तुम तो जानती तो के मैं जुम्मन सेख का परम मित्र हूँ, मैं उनके खिलाफ कैसे बोल सकता हूँ। इसपर बुढिया ने अलगू चौधरी से कहा के दोस्ती टूटने के भय से इमान की बात नहीं कहोगे, इमान से बढकर क्या कोई दोस्ती होती है। बुढ़िया की यह बात अलगू चौधरी को झकझोर कर रख दिया और अंत में अलगू चौधरी ने बुढ़िया को हाँ भर दी।

"पंच परमेश्वर कहानी की समीक्षा और सारांश - मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद द्वारा रचित"

दुसरे दिन की संध्या समय पीपल वृझ के निचे पंचायत बुलाई गयी। पंचायत में जुम्मन सेख से पुछा गया की आप पंच किसे मानते हो? इसपर जुम्मन सेख ने कहा की खला जिसे चाहे उसे पंच चुन ले। तो इसपर बुढिया ने कहा की मैं अलगू चौधरी को अपना पंच चुनती हूँ। वह जो न्याय देगा मुझे मान्य है। यह सुनकर जुम्मन सेख बहुत ही प्रसन्न हुए की न्याय मेरे तरफ ही होगा।
परन्तु कहा जाता है की पंच के मुह से जो न्याय होता है वह स्वयं परमेश्वर यानि इश्वर के मुह से होता है। अलगू चौधरी ने पंच के पद पर आशिन होकर बोला की बुढिया के जमीन जायदाद से इतना से इतना तो अवश्य ही आय होता है जिससे की बुढिया की परवरिश आच्ची तरह से हो सके, इसका मतलब जुम्मन सेख को अपनी खाला को मासिक खर्च देना उचित है और यही पंच की वाणी है। 
यह सुनकर मानो जुम्मन सेख पर मानो हथोरा के समान दिल पर चोट पड़ा। और इस प्रकार पंचायत समाप्त हुआ। अब उस दिन से दोनों मित्र तलवार और ढाल के सामान मिलने लगे और जुम्मन सेख अलगू चौधरी के अवसर मिलने का इंतज़ार करने लगे।
संजोगवश अलगू चौधरी ने खेती के वास्ते एक जोड़ी हत्था कट्टा और तगड़ा खरीद कर कहीं ले गये। उस बैल को देखने के लिए गाँव के लोग प्रतिदिन आने लगे। संजोग से एक दिन एक बैल की मृत्यु हो गयी। अब मात्र एक बैल बचा। उसे भी अलगू चौधरी ने संभु साहू के हाथ उधर बेच दिया। संभु साहू ने बैल से इतना अधिक काम लिया की बैल एक दिन स्वर्ग सिधार गये। अलगू चौधरी जब संभु साहू से बैल का कीमत मांगते तो बातें टालकर समय बिताने लग जाते। एक दिन अलगू चौधरी की पत्नी संभु साहू के घर जाकर बैल की कीमत मांगी तो उलटे संभु साहू की पत्नी के कही, कम्बक्त ने ऐसा बैल दिया के जिसके चलते हम सब परिवार लुट गये, और हमारा सर धन चोर लूट ले गया। व्यापर करते समय रस्ते में ही माल से भरा बैलगाड़ी खीचते खीचते रात में अपना प्राण त्याग दिया था। जिसके करण रात में चोर सारा धन लूट ले गये। इस तरह से बात काफी आगे बढ़ गयी और उन्होंने कीमत देने से इंकार कर दिया। 
अंत में लाचार होकर चौधरी ने पंचायत बुलाई, फिर वही पीपल के पेड़ के नीचे संध्या में पंच लोग न्याय देने के लिए बैठ गये। अलगू चौधरी से पुछा गया भाई आप किसे पंच मानते हो। उसने साफ़ सब्द में कह दिया की संभु साहू जिसे चाहे पंच मान ले इसमें मुझे कोई ऐतराज़ नहीं। संभु साहू ने जुम्मन सेख को ही पंच चुना। अब अलगू चौधरी को लगने लगा की जुम्मन सेख उसके पक्ष में न्याय नहीं देगा। जुम्मन सेख भी इस बात पर उच्चल पड़ा की अब न्याय मेरे हाथ में है। निश्चय ही अलगू चौधरी से बदला लूँगा। 
परन्तु पंच के पद पर बैठते ही जुम्मन सेख के आत्मा से ऐसे न्याय निकला की सब लोग दंग रह गये। जुम्मन ने सभी बातों को भुलाकर अलगू चौधरी के पक्ष में न्याय दिया की बैल कमजोर या रोग से ग्रषित नहीं था जिससे उसके प्राण पाखरू उड़ गया बल्कि बैल से संभु साहू ने इतना कठिन परिश्रम व्यापर में कराए साथ ही साथ उनके चारा पानी का भी ध्यान नहीं रखता मात्र बैल से कठिन काम लेने के कारन उनके प्राण निकल गये।  
इस में साड़ी लगती संभु साहू की है जसके कारन बैल मर गया। पंच यही न्याय देता है की संभु साहू को बैल का उचित कीमत देना होगा। जुम्मन सेख जब पंच के पद पर आशिन हुआ तो उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ की वास्तव में पंच के मुख से जो वाणी निकलता है वह स्वयम परमेश्वर के मुख से निकलता है। इसमें थोरा भी संदेह नहीं। न्याय के बाद दोनों मित्र इस तरह से आपस में लिप्ता की मानो कई साला से मुर्झ्ये हुए पेड़ में वशंत आ गया हो। आपस में दोनों मित्र ने इतना फूट फूट कर अंशु की धारा बहा की दोनों की आत्मा स्वछ हो गया और पुनः दोनों की मित्रता कायम वार्करार बना रहा। इस प्रकार पंचायत हर्षो उल्लास के साथ समाप्त हुआ। 

(पंच परमेश्वर कहानी की समीक्षा और सारांश - मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद द्वारा रचित) - कहानी समाप्त

18 टिप्‍पणियां:

  1. पहले कृपया अपनी हिंदी सुधारें | ऐसी हिंदी से आप दूसरों की हिंदी भी बिगाड़ देंगे |

    जवाब देंहटाएं