दो बगुले और कछुआ परम मित्र थे। तीनों में काफी घनिष्ट संबंध था। तीनों मित्रों में अटूट विस्वास थे।
एक तलाब में एक कछुआ रहता था। बगुले उस तलाब के मछलियॉ खाकर पेट भरता था। कुछ समय बाद उस तलाब का पानी सुखने लगा। कछुआ ने दोनों मित्रों से कहा - हे मित्र इस तलाब का पानी सूख रहा है। अब मुझे दुसरे तलाब में ले चलिए अन्यथा मुझे मारकर मनुष्य खा जायेंगे। बगुले ने कहीं से एक डंडा लाया और अपने मित्र कछुआ से कहा, हे मित्र आप इस डंडे के बीचो बीच भाग को दांत से कस कर पकर लो। हम दोनों डंडे के दोनों किनारे कस कर पकङ कर आकाश मार्ग से दूसरे तालाब में ले जाऊॅगा। आप को बीच में कुछ नहीं बोलना है। योजना अनुसार कछुआ डंडा के बीच भाग में दांत से कसकर पकङ लेना और हम दोनों डंडे के दोनों किनारे कसकर पकङ के आकाश मार्ग से ले जाकर दूसरे तालाब में छोङ दूंगा। एेसा ही किया परन्तु आकाश मार्ग से ले जाते देखकर कुछ ग्वाला ने कहने लगा कि यदि कछुआ गिर जाय तो उसे मारकर, आग में भुनकर खा जाएगें। यह सुनकर कछुआ गुस्से में कहा, तुम राख खाओ। इतना कहते ही कछुआ जमीन पर गिरा और ग्वाला लोग उसे आग में पकाकर खा गए।
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