इस कहानी "भगवान का परम भक्त कौन?" के द्वारा हम यह जान पायंगे की भगवान भी अपने भक्त को उतना ही चाहते हैं और साथ रहना चाहते है जितना की एक भक्त की लालसा भगवान के साथ रहने की होती हैं।
एक बार की बात है जब अयोध्या में भगवान राम का राजतिलक हो गया। उसके बाद तय होना था की सभी लोग भगवान् राम की सेवा करें। हनुमान जी भी सेवा करें। तीनों भाई और सुग्रीव आदि इक्कठे हुए और उनलोगों में मंत्रणा हुई की ऐसा करो की हम लोगों को अधिक सेवा करने का मौका मिले हनुमान जी को थोड़ा कम मिले।
उन्होंने सेवा की एक सूची बनाई की भगवान को कौन कौन सी सेवा अपेक्षित है और किस समय कौन सी सेवा होगी। इन सबों की एक लम्बी सूची समय के साथ बना दी और इसमें सेवा करने वालों का नाम भी साथ में लिख दिया।
हनुमान जी के लिए उस सूची में कोई जगह नहीं रखी थी। इस सूची को भगवान राम के पास ले जाया गया और उनसे कहा की, "महाराज! काफी उथल पुथल हो रहा था कभी कोई आये तो कभी कोई और आये व्यवस्था नहीं
हो पा रही थी। इसलिए हम लोगों ने विचार किया की सेवा कार्य सुव्यवस्थित हो और हमने सेवा कार्यों की सूची बना दी। कृपया आप इसे देखें और स्वीकार करें। भगवान श्री राम ने सूची को देखा और फिर मुस्कुराये और फिर बोले, सभी कार्य इसमें आ गए, परन्तु हनुमान का नाम नहीं है इसमें। तो इसपर उनलोगों ने कहा की महाराज, अब कोई सेवा बची नहीं है इसलिए उसका नाम कहाँ लिखे? तो प्रभु श्री राम ने कहा ठीक है और इस सूची को स्वीकार कर लिए।
अब हनुमान जी आये और भगवन राम से कहा की एक सेवा मेरे लिए बच गयी है, वह मुझे दे दीजिए। इसपर भगवान राम ने कहा की इसमें तो कोई सेवा बची नहीं है अगर कोई बची है तो वो तुम्हारी है।
हनुमान जी ने कहा, "महाराज आप कोई आम आदमी तो हैं नहीं, आप एक राजा हैं इसलिए जब भी आपको जम्हाई आएगी तो उस समय कोई सेवक रहे जो चुटकी बजा दिया करे।" भगवान राम ने इस कार्य को हनुमान जी को सौंप दिया। इसपर लोगों ने कहा, "इस कार्य को किस समय लिया जाय?" तो इसपर हनुमान जी ने कहा "यह तो प्रभु श्री राम से पूछिए, यह मैं कैसे बता सकता हूँ? जम्हाई का कोई समय होता है क्या, रात में आ जाय, दिन में आ जाय, रस्ते में आ जाय, महल में आ जाय, उठने, बैठने, सोते, नहाते कभी भी आ सकती है। लोगों ने कहा, "समय क्या लिखें?" भगवान ने कहा, "सब समय लिखो, आठों पहर हनुमान की सेवा रहेगी।"
अब सभी लोग हैरान हो गए, हम लोग तो समय समय पर सेवा करेंगे और हनुमान तो हमेशा सेवा में रहेंगे। बात सच्ची है जिनके मन में सेवा का भाव जाग्रत है, उनको सेवा का अवसर मिलता है और जो सेवा से जी चुराते हैं उनके सामने से सेवा का अवसर आकर चला जाता है। जो भगवान का हो जाता है उसे भगवान सदा अपने समीप रखने में प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। यदि हम दूर भेज देते हैं तब भी वह नाराज़ नहीं होता है। इससे भगवान की अनुकूलता प्राप्त हो जाती है। इसलिए हम भगवान के हो जाए यह एक बात है, दूसरी बात हम भगवान के अनुकूल कार्य करें। उनकी रुचि के अनुसार कार्य करें। जब यह हो जायगा तब हमारी रुचि अलग नहीं रहेगी हमारी आकांक्षा अलग नहीं रहेगी। भक्त वो होता है जो अपनी सभी आकांक्षाओं, इच्छाओं और अभिलाशो को भगवान की चाह में मिला दें। भगवान की चाह के अलावा कोई और चाह हो ही नहीं। हम भाव से खुद को भगवान का बना लें। खुद को कामना, वासना, आसक्ति और ममता का गुलाम न रखें। केवल भगवान का बना लें तभी हम भगवान के हो जायँगे।
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समाप्त - भगवान का परम भक्त कौन?
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