राजा दिलीप का जन्म त्रेता युग में हुआ था। वह प्रजापालक, प्रजसेवक, तथा प्रजा की भलाई में दिनरात चिंतित रहा करते थे। परन्तु उसे अपने राज्य का उत्तराधिकारी यानि कोई संतान नहीं था।
उसने अपने पुरोहितों को बुलाकर उत्तराधिकारी के निंदा के विषय में पूछताछ किया तो उन्होंने बताया की संतान के लिए उन्हें यज्ञ करना पड़ेगा। पुरोहितों के कथनानुसार राजा ने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ भी कराया। यज्ञ में ही किसी संत ने राजा से कहा की आपको एक नन्दनी नाम की गाय मिलेगा, उसकी सेवा आप दोनों पति पत्नी को दिन रात करनी होगी। जिस दिन गाय आप दोनों से प्रसन्न हो जायगी तब तुम्हें वरदान स्वरुप पुत्र प्राप्त होगा।
उसने अपने पुरोहितों को बुलाकर उत्तराधिकारी के निंदा के विषय में पूछताछ किया तो उन्होंने बताया की संतान के लिए उन्हें यज्ञ करना पड़ेगा। पुरोहितों के कथनानुसार राजा ने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ भी कराया। यज्ञ में ही किसी संत ने राजा से कहा की आपको एक नन्दनी नाम की गाय मिलेगा, उसकी सेवा आप दोनों पति पत्नी को दिन रात करनी होगी। जिस दिन गाय आप दोनों से प्रसन्न हो जायगी तब तुम्हें वरदान स्वरुप पुत्र प्राप्त होगा।
राजा दिलीप की कथा - नंदनी गाय
राजा पति पत्नी मिलकर दिन रात इतनी तन्मयता से नन्दनी गाय की सेवा करने लगे की गाय जब खाती थी तभी दोनों पति पत्नी खाते थे। गाय बैठती थी तभी दोनों बैठते थे। यानि गाय जैसे करते थे वैसे ही दोनों करते थे।
एक दिन की बात है की राजा दिलीप दोनों प्राणी गाय को खोलकर मैदान में चारा खिला ही रहे थे की माया से बने एक शेर ने नन्दनी गाय पर झपट कर खाने को दौड़ा ही था की तभी दोनों राजा रानी बोले की हे शेर मेरी गाय को छोडकर यदि आप ज्यदा भूखे हैं तो हम दोनों प्राणी तो खाकर अपना भूख मिला लीजये। इतना कहकर दोनों प्राणी धरती पर लेट गये। शेर महाराज उन दोनों की सेवा एवं त्याग तो देखकर दंग रह गये। माया से बना शेर ख़त्म हो गया और उसी समय जगत जननी माता शेरावाली प्रकट होकर बोली मैं तुम दोनों प्राणी की सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हूँ, वरदान मागों क्या चाहते हो? तो इसपर राजा और रानी दोनों हाथ जोडकर बोले हे जगत जननी माता शेरावाली हमारा कोई उत्तराधिकारी नहीं है, अतः आपसे प्रार्थना है की राज्य के उत्तराधिकारी हेतु एक पुत्र दे दे। जगत जननी माता शेरावाली ने कहा तथास्तु और अंतरध्यान हो गयी।
अंततः राजा की पत्नी ने नौ मॉस बाद पूर्णिमा की रात्रि में एक पुत्र को जन्म दिया। राज्य में चारों ओर खुसिओं की लहर फ़ैल गई। और राजा ने काफी दान दक्षिणा देकर संतोष प्राप्त किया।
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