हर माता पिता का स्वपन रहता है की हमारे बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करे, उच्च कोटि के दर्जा वाले नागरिक बने अच्छे से अच्छा पेशा अपनाएं जिससे की हमारे बच्चे सुख शांति से अपना जीवन यापन एवं अपने बच्चे का परवरिश अच्छी ढंग से कर सके। यह स्वपन पूरा होना अशंभव सा लगता है परन्तु यदि व्यक्ति प्रतिज्ञावद होकर या संकल्प कर कोई काम करना अशम्भ्व करता है तो अशंभव कार्य भी अवश्य कर पूर्ण हो जाता है। यह स्वपन माता-पिता का तभी पूर्ण हो सकता है जब वह अपने बच्चे का संस्कार बचपन से सही ढंग से बनाएं अर्थात अच्छे संस्कार से संस्कृत करे, अच्छा वातावरण एवं कुशल व्यव्हार, अच्छा गुण ये सब चरित्र निर्माण का प्रतिक है। माता-पिता अपने बच्चे को बड़ी तन्मयता एवं लगन के साथ कुछ आशा रखकर पढ़ाते हैं। बचचे भी मन लगाकर पढ़ते हैं, बी.अ , म. अ. , बी. टेक आदि जैसे अच्छी डिग्री प्राप्त कर लेते हैं फिर भी विद्यर्थी को नौकरी के लिए भटकना ही पड़ता है। तो यह शिक्षा किस काम का यानि फलवती नहीं होता। विद्यर्थी अच्छे से अच्छे अंक प्रात्त कर भी घुमते रहते हैं। ऐसे शिक्षा का सबसे बड़ा कारन हैं की हमारी सामान्य शिक्षा ही दोषपूर्ण है अर्थात उन्हें जैसे शिक्षा' से शिक्षित किआ गया है वह बेकार और अटपटा लगता है। देश को जैसे शिक्षा की आवशकता है उसे वह प्राप्त नहीं करने के कारन भटकना पड़ता है। विदेश में यानि जापान, जर्मनी और रूस जैसे शिक्षा से हमारे देश को नहीं शिक्षित करने का कारन है पढाई के साथ साथ आर्थिक शिक्षा का भी कार्य करता है। ऐसे विदेशो में व्यवस्था है जिसके कारन विदेशी विद्यर्थी को पढने के बाद आर्थिक मामले में भटकना नहीं पड़ता। परन्तु अपने देश के विद्यर्थी के लिए पढकर बैठने के बाद उन्हें व्यवहारिक जीवन में मनो बंदर कूद के सामान जिंदगी बन जाता है। उसे ऐसा लगता है की को सा काम या रोजगार करके अपने एवं परिवार का रक्षण पोषण करे। उसे जीवन अंधकार सा लगता है, जिससे अपने जीवन को रसमय नहीं बना सकता है। इससे साफ़ प्रतिक होता है की भारत में शिक्षा में बदलाव होना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है, तभी हमारा देश विकषित देश बन सकता है।
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