रविवार, 18 दिसंबर 2016

न्याय मंत्री - Minister of Justice - प्रेर्नातामक हिंदी कहानी

एक बार राजा चक्रवर्ती अशोक अपने राज्य पर शासन कर रहा था। उनके गुप्तचर चरों ओर राज्य के फैले हुए थे। राजा अशोक भी अपने राज्य का बेस बदलकर भ्रमण करता था।

एक दिन की बात है की जाङे (शरद) ऋतू अपने उफान पर थे। इस ऋतू में लोग अपने घर के आगे आग जला के हाथ पाँव सकते रहते हैं। इसी क्रम में आग के पास बैठे व्यक्ति आपस में कुछ बातें कर रहे थे की रजा साहब के राज्य में सही न्याय नहीं होता है। तभी एक शिशुपाल नाम के व्यक्ति कह रहा था कि यदि मुझे एक बार भी मौका मिले तो बताऊँ कि न्याय वास्तव में क्या होता है। इस बात को राजा के गुप्तचर में सुन ली और राजा को जाकर बता दिया।
राजा ने एक पहरेदार की हत्या कर दी  राजा ने भरी सभा में शिशुपाल को बुलाया और कहा कि कल रात एक पहरेदार कि हत्या हो चुकी है,  मै तुम्हें मंत्री पद पर नियुक्त करता हूँ, और यह स्वर्ण मुद्रा की अंगूठी प्रदान कर तुम्हें सही न्याय करने का आदेश, एक सप्ताह के अंदर देता हूँ। अन्यथा तुम्हें फँसी पर लटका दिया जयगा। शिशुपाल उस दिन से अपना मंत्री पद सम्हालते हुए हत्यारा का सही ढंग से खोज करने लगे। सप्ताह के पांच दिन बीत गये। उसने पहरेदार का सही हत्यारा का पता लगा लिया। सप्ताह के अंतिम दिन सभा लगाईं गयी। सभा में सभी उपस्थित हुए  राजा ने मंत्री को आज्ञा दिया कि पहरेदार के सही हत्यारे को सामने लाओ, और सभी न्याय सभा सादो को दो। तभी शिशुपाल ने सिपाही को राजा अशोक की ओर इशारा करते हुए कहा, हत्यारा कोई नहीं स्वयं हमारे राज्य के ही राजा अशोक को फांसी पर चढ़ा दो। राजा अशोक को फांसी पर चढाने की बात सुनकर सभासद सन्न और अस्चार्यचाकित रह गये। सभासद और जनता ने न्याय दिया कि राजा कि प्रतिष्ठा और सम्मान देखते हुए। सोने की मूर्ति राजा के स्वरुप बनवा कर फंसी पर लटका दिया जाए जिससे एहसास हो कि राजा होने पर भी उन्हें भी कानून न्याय नहीं छोङता है, उसे भी सजा काटना ही परता है।

(समाप्त)

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