रविवार, 27 नवंबर 2016

अरुणी - आज्ञाकारी छात्र - Aruni - An Obedient student

प्राचीन काल में घौम्य नाम के एक आश्रम में एक ऋषि रहता था। वह अपने शिष्यों को शिझा देने का कार्य करते थे।

आषाढ़ का महीना था, आकाश में चारो ओर काले काले बादल देखते देखते घिर गया और धिरे धिरे बूंदा बांदी होने लगा। गुरू जी ने अरूणी नाम के शिष्य को खेत पर ंमेङ ठीक करने के लिए भेजा। तब तक वर्षा भी तेज रफ्तार से बरसना शुरू हो गया था। अरूणी ने खेत पर पहुँचकर देखा कि खेत की मोङ टूटी पङी है और पानी बङे तेज रफ्तार से बहे जा रहे थे। अरुणि ने कुदाल से गिली मिट्टी काट काट कर देना आरंभ किया, परन्तु वह असफल रहा। अंत में वह मेङ की जगह स्वयं लेट गया। पानी का बहना तो बहुत कम हो गया था। परन्तु वह संध्या तक ही नहीं बल्कि जबतक गुरूजी अपने शिष्य मंडली के साथ उनके पास नहीं पहुँचा। तब तक वह उसी प्रकार लेटा रहा। और पानी का बरसना भी थम गया था।
संध्के समय जब सभी विधार्थी पढ़ने के लिए उपस्तिथ हुए तो अरुनि को नहीं देखकर बहुत चिंतित हुए। और अरुणि को पुकारते हुए शिष्य मंडली के साथ खेत पर पहुँचा। तो गुरूजी ने देखा कि अरुणि मेंङ के बदले खुद मेंङ बनकर लेटा है। गुरु जी को बहुत अाश्चर्य हुआ कि अरुणि कितना कष्ट उठाये हुए हैं। गुरु जी ने अरुणि को ह्रदय से लगा लिया। और कहा कि आज तक हमें एेसा कोई कर्तव्यनिष्ठ शिष्य कोई नहीं मिला था। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारा नाम दुनियाँ में अमर हो जाएगा। सभी शिष्य मंडली मिलकर मेङ को ठीक कर दिया और समय पर धान का फसल लगाया गया। 

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